वांछित मन्त्र चुनें

मा कस्मै॑ धातम॒भ्य॑मि॒त्रिणे॑ नो॒ माकुत्रा॑ नो गृ॒हेभ्यो॑ धे॒नवो॑ गुः। स्त॒ना॒भुजो॒ अशि॑श्वीः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mā kasmai dhātam abhy amitriṇe no mākutrā no gṛhebhyo dhenavo guḥ | stanābhujo aśiśvīḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मा। कस्मै॑। धा॒त॒म्। अ॒भि। अ॒मि॒त्रिणे॑। नः॒। मा। अ॒कुत्र॑। नः॒। गृ॒हेभ्यः॑। धे॒नवः॑। गुः॒। स्त॒न॒ऽभुजः॑। अशि॑श्वीः ॥ १.१२०.८

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:120» मन्त्र:8 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:3 | मण्डल:1» अनुवाक:17» मन्त्र:8


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजधर्म का उपदेश अगले मन्त्र में करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे रक्षा करनेहारे सभासेनाधीशों ! तुम लोग (कस्मै) किसी (अमित्रिणे) ऐसे मनुष्य के लिये कि जिसके मित्र नहीं अर्थात् सबका शत्रु (नः) हम लोगों को (मा) मत (अभिधातम्) कहो, आपकी रक्षा से (नः) हम लोगों की (स्तनाभुजः) दूध भरे हुए थनों से अपने बछड़ों समेत मनुष्य आदि प्राणियों को पालती हुई (धेनवः) गौयें (अशिश्वीः) बछड़ों से रहित अर्थात् बन्ध्या (मा) मत हों और वे हमारे (गृहेभ्यः) घरों से (अकुत्र) विदेश में मत (गुः) पहुँचे ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - प्रजाजन राजजनों को ऐसी शिक्षा देवें कि हम लोगों को शत्रुजन मत पीड़ा दें और हमारे गौ, बैल, घोड़े आदि पशुओं को न चोर लें, ऐसा आप यत्न करो ॥ ८ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजधर्ममाह ।

अन्वय:

हे रक्षकाश्विनौ सभासेनेशौ युवां कस्मै चिदप्यमित्रिणे नोऽस्मान् माभिधातम्। भवद्रक्षणेन नोऽस्माकं स्तनाभुजो धेनवोऽशिश्वीर्मा भवन्तु ता अस्माकं गृहेभ्योऽकुत्र मा गुः ॥ ८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मा) निषेधे (कस्मै) (धातम्) धरतम् (अभि) आभिमुख्ये (अमित्रिणे) अविद्यमानानि मित्राणि सखायो यस्य तस्मै जनाय (नः) अस्मान् (मा) (अकुत्र) अविषये। अत्र ऋचितुनु० इति दीर्घः। (नः) अस्माकम् (गृहेभ्यः) प्रासादेभ्यः (धेनवः) दुग्धदात्र्यो गावः (गुः) प्राप्नुवन्तु (स्तनाभुजः) दुग्धयुक्तैः स्तनैः सवत्सान् मनुष्यादीन् पालयन्त्यः (अशिश्वीः) वत्सरहिताः ॥ ८ ॥
भावार्थभाषाः - प्रजाजना राजजनानेवं शिक्षेरन्नस्मान् शत्रवो मा पीडयेयुरस्माकं गवादिपशून् मा हरेयुरेवं भवन्तः प्रयतन्तामिति ॥ ८ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - प्रजेने राजाला असे सांगावे की, आम्हाला शत्रूने मारता कामा नये व आमच्या गाई, बैल, घोडे इत्यादी पशूंना चोरांनी नेऊ नये असा तुम्ही प्रयत्न करा. ॥ ८ ॥